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“अंतिम आदमी”

कलम-पथ
कलम-पथ
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पुश्त दर पुश्त
“अंतिम आदमी”!
किसने देखा “अंतिम आदमी” को!
कौन है “अंतिम आदमी”!
क्या है “अंतिम आदमी” की हस्ती!
“अंतिम आदमी” जिसके बारे में
बातें तो सभी करते है, पर
अभी तक उसे देखा किसी ने नहीं है!

“अंतिम आदमी”
इस सिस्टम के हांथो
छला जाता रहता है हरदम,
बावजूद इसके
उसकी उम्मीद ख़तम नहीं होती!

“अंतिम आदमी” देखते-देखते
आबादी की गुमनाम भीड़ का
हिस्सा बन जाता है।
एक दिल में सुलग रही चिंगारी
पूरे समाज की आग बन सकती है।

धर्मभूमि / कर्मभूमि में
हर शख्श अकेला होता है।
अब बहस नहीं
काम की जरूरत है।
“अंतिम आदमी” का क्रोध
एक कभी न ख़त्म होने वाली
चुप्पी बन सकता है।

“अंतिम आदमी”
होनहार जागरूक रहने के बाद भी
वह देश के लाखों
वंचित इंसानों के आंकड़ो में
खड़ा रहता है।

“अंतिम आदमी” लम्बे समय से
नौकरी न होने के कारण
एक कभी ना ख़तम होने वाली
गरीबी में जीवन बसर करता रहता है।

“अंतिम आदमी”
बिछुड़ने की नियति लेकर
मिलता है अपनो से।
इलाज से वंचित रहना उसका प्रारब्ध।
समाज की उपेक्षा उसकी विरासत।

“अंतिम आदमी” एक ऐसा चेहरा है,
जो जाने कब सबसे
छिटक कर अलग हो गया।
“अंतिम आदमी”,
दवाई होती उसके पास तो वह
अपने परिवार के सदस्यों को
बिमारी से बचा लेता।

“अंतिम आदमी”
यदि हम-आप इस तरफ से
आँखे चुराते है तो यह एक अपराध है।
“अंतिम आदमी”,
यही भारत की 78 प्रतिशत आबादी है।
आंकड़े छिप जाते है,
मगर यह मानवीय त्रासदी है,
जिसमे गहरी तकलीफ छुपी होती है।
“अंतिम आदमी”
जिसके दिमाग में धारणा बैठ गयी है कि
वह कुछ नहीं कर सकता है,
उसका मानसिक संतुलन किंकर्तव्यविमूढ़ है।

“अंतिम आदमी” वह है जिसे
हमारी बनाई दुनिया में
उसके लिए जगह नहीं है।
गाँव में “अंतिम आदमी” को
दहपटों और भू-माफियाओं ने
अपने चंगुल में दबोच रखा है।

टूटा हुवा है “अंतिम आदमी”!
यह भारत की पीड़ा है!
युवा मन की पीड़ा है!
“अंतिम आदमी” की पीड़ा है!
कोई न छूट पाए कभी,
इस संघर्ष में खुद छूट जाता है
“अंतिम आदमी”।

एक गरीब की भावनाओं को
दुनिया भर का पैसा
नहीं खरीद सकता।
“अंतिम आदमी”गलियों में
तरक्की को प्रतीक्षारत है।
दूसरों के विस्तार में
खुद को समेटे रखा है “अंतिम आदमी” ने।
ऐसे ही जीवित है “अंतिम आदमी”!!

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