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‘वंचित आदमी’

कलम-पथ
कलम-पथ
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[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]
शासन से दूर जा पड़ा
‘वंचित आदमी’
समाज का
वह उपेक्षित संस्करण है,
जो मानवीय मूल्यों के प्रति
जागरूक समाज में
मानव मूल्य से ही
वंचित कर दिया गया है।
विकसित हो रहे सभ्यता में
‘वंचित आदमी’
पथराई आँखों से
ख़ास हो चुके
इंसानों की तरफ
आशा भरी निगाह से
देख रहा है।
‘वंचित आदमी’ को
अपेक्षा है कि
इन दिवसों के संघर्ष में
अचानक एक दिन
उसके पास पास
उससे आगे जा चुका
‘ख़ास आदमी’
वापस आएगा!
साथ बैठकर
दुःख-सुख बांटेगा !
सभ्यता के
विकास पथ की
अपनी
आप-बीती बताकर
उसे
विश्व्गांव से जोड़ेगा।
[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]

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